सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Monday 8 April 2013

गणितक ओझराएल हिसाब छी

गजल-15

गणितक ओझराएल हिसाब छी हम
सुधि नहि रहल कोनो शराब छी हम

शोणित बहाबै लड़ि कऽ अपनेमे सब
दुखसँ छटपटाइत तेजाब छी हम

एक एक आखरमे अनन्त भाव अछि
बुझै सब अनचिन्हार किताब छी हम

पाथरसँ बस चोटक आशा करै छी
काँटमे फूलाएल एगो गुलाब छी हम

निर्लज्ज भऽ गेल जमाना कनिको लाज नै
बिसरि गेल हमरा की खराब छी हम

चलि रहल देखू आब कागजेपर देश
"सुमित" की कहतै एतऽ जबाब छी हम

वर्ण-15
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

Wednesday 20 March 2013

छी दूर मुदा आँखिमे रहू प्रिय

गजल-14

छी दूर मुदा आँखिमे रहू प्रिय
आबि कऽ सपनामे जगबू प्रिय

नै दिन नै राति बुझै मनवाँ
आब विरहक दर्द सहू प्रिय

फागुन मास रंगीन छै दुनियाँ
अहाँ बेरंग किए छी कहू प्रिय

सुन्न लागै अपन घर आँगन
आयब कहिया सेहो लिखू प्रिय

आबि गेल फगुआ कतऽ छी अहाँ
मिसियो भरि रंग लगाबू प्रिय

बाट अहींके बाट तकैत अछि
"सुमित" कहै झटसँ आबू प्रिय

वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

Friday 15 March 2013

नवका रंगमे रंगा रहल छै

गजल-13

नवका रंगमे रंगा रहल छै
अपनों लोकसँ डेरा रहल छै

बिसरि जाऊ सब बाग बगीचा
सबटा सपना उड़ा रहल छै

माँटि बनल आब गरदा देखू
अप्पन जिनगी जड़ा रहल छै

कतऽ छै कल-कल निर्मल धारा

छोड़ि संग सब पड़ा रहल छै

मोन कलपै छै समय देख कऽ
नीर नैन आब चोरा रहल छै

"सुमित" चाहत प्रेम सदिखन
डोरि सिनेहक जोड़ा रहल छै

वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन,समस्तीपुर

Monday 11 March 2013

नै कहू कखनो

गजल-12

नै कहू कखनो पहाड़ छै जिनगी
दैबक देलहा उधार छै जिनगी

भारी छै लोकक मनोरथक भार
कनहा लगौने कहार छै जिनगी

आशा निराशासँ कठिन बाट अछि
समय छै लगाम सवार छै जिनगी

विधना खेलथि खेल मनुख संग
खन इजोर वा अन्हार छै जिनगी

चलत निरंतर कर्मक नाहपर
कल-कल बहैत धार छै जिनगी

लिए मजा जुनि भेंटत दोबारा
"सुमित" सुधाकें फुहाड़ छै जिनगी

वर्ण-13
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

जरि-जरि ओ इजोर करै छै

गजल-11

जरि-जरि ओ इजोर करै छै
अंत-अंत धरि नोर खसै छै

धनके बल सँ उड़ैत अछि
पैर धरा पर राखि चलै छै

मुँह पर हँसीके मुखौटा सँ
पीड़ करेजमे दाबि रहै छै

दौड़ एहन दौड़ नै सकलौँ
समयोके समय यादि रखै छै

साँच सभसँ भरिगर पाप
उलटा गंगा धार बहै छै

देब कोना आब शिक्षा केकरो
आन्हरो पोथी खोलि पढै छै

गाम डुबायल चिन्ता नै अछि
माँथहि तगमा साटि चलै छै

मोनक गप्प मोनहि राखल
"सुमित" शब्दमेँ बान्हि कहै छै

वर्ण-11

सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

भक्ति गजल

भक्ति गजल-1

हम निर्बुद्धि-पापी बैसल कानै छी
पुत्र अहीँके जननी क्षमा माँगै छी

तोहर दुआरि बड भीड़ हे मैया
कखन देब दर्शन आब हारै छी

अष्टभुजा नवरुप जगदम्बिके
दशो दिशा विभूषित अहाँ साजै छी

ममतामयी झट दया-दृष्टि करु
नाव भँवरसँ दुःखियाके उबारै छी

अरहुल फूल आ ललका चुनरी
असुर विनासिनी जगके तारै छी

"सुमित" बालक जुनि ज्ञान हे दुर्गे
चरण बैसिकऽ गीत अहीँके गाबै छी

वर्ण-12

सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर

Thursday 28 February 2013

बाल गजल

बाल गजल-1

चान आ तरेगण दोस हमर छै
जागि रहल किए राति सगर छै

बाबी सुनौलक परी रानीकेँ खिस्सा
उड़ैत हमर छतकेँ ऊपर छै

बाबू जी आनलनि एकटा मोबाईल
गप्प करबै कोना सब शहर छै

जाकऽ असगर हम घुमितौं मेला
कहलक माए ई छोट उमर छै

पढ़ौलक स्कूलमे धरती गोल छै
देखहीं बात ई झूठ ओकर छै

वर्ण-13
सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

ग्रहण लागल अछि

गजल-10

ग्रहण लागल अछि सूर्यसँ चान धरि
जिनगी सिमटल घरसँ बथान धरि

सीना तानि खड़ा सीमापर किछु जवान
लड़ै मातृभूमि लेल आनसँ शान धरि

पाथरपर घिस रंगीन भेल मेंहदी
ठोकर देने अछि अपनसँ आन धरि

एक झूठसँ टूटि बिखरि गेल करेज
लय हीन गीत हम सुरसँ तान धरि

करिया धुन्धमे गुम भऽ गेल सब किछु
माँगत अधिकार बच्चासँ सियान धरि


गरीबी केर चक्कीमे पिसा रहल लोक
चालि एक्के "सुमित" तीरसँ कमान धरि


वर्ण-15
सुमित मिश्र 
करियन ,समस्तीपुर

जाऊ नहि सजनी नेह तोड़िक'

गजल-9

जाऊ नहि सजनी नेह तोड़ि कऽ
देह रहत कोना प्राण छोड़ि कऽ

काटि अहुरिया यादि बचल छै
नोर बहल अछि पीड़ जोड़ि कऽ

पटा प्रेमसँ अपन फुलवाड़ी
छीनल सपना हाथ मरोड़ि कऽ

आब अहाँ छी अनकर जीवन
सुतब हम आब कब्र कोरि कऽ

उमड़ै सागर दुख करेजमेँ
सुखलै बादल रस निचोड़ि कऽ

पागल मजनू कहै छै दुनियाँ
"सुमित" सतायल प्रीत जोड़ि कऽ

वर्ण-12

सुमित मिश्र
करियन(समस्तीपुर)

सबटा मोनक बात

गजल-8

सबटा मोनक बात हुनक आँखि बता गेल
बहल एहन बसात हमर होश उड़ा गेल

नदीकेँ धारकेँ विपरीत चलबाक कोशिश
भासैत जा रहल स्वप्न सब किछु हेरा गेल

पाथरपर फूल उगायब जुनि छै कठिन
डेगहिँ-डेग मिलल निराशा आश जगा गेल

स्वार्थक बदरी मानवतापर मँडरायल
भाइ-भाइमे दुश्मनी गामक-गाम जरा गेल

संस्कृतिकेँ झकझोरैत नव जमानाकेँ दौड़
लोक-लाज गुम अपन उपस्थिति देखा गेल

गरीबी केर लत्ती चहुँ ओर लतरल अछि
गमकैत फुलबाड़ी "सुमित" पल भरिमे सुखा गेल

वर्ण-17
सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

पहाड़ संग टकरेबाक लेल

गजल-7

पहाड़ संग टकरेबाक लेल अटल विश्वास चाही
नै मिझा सकै एहन ज्वालामुखीके प्रकाश चाही

पिँजराक बंधन में बन्न पंछी कोना कऽ उड़ि सकत
कोनो सपना पूरा करबाक लेल मुक्त आकाश चाही

करेज पर चोट करैत भविष्य केर किछु सवाल
शीप वा मोती पाबऽ लेल सागर पिबाक पियास चाही

अन्हारेमे आयल दिनकर सँ संसार रोशन छै
अज्ञानता सँ जीतबाक लेल निरंतर प्रयास चाही

ई चलायमान दुनिया अनवरत चलैत रहत
मुदा अचल नाम लेल पहचान किछु खास चाही

माटि पर गिरल फूल सँ भी घर-आँगन गमकत
मुदा ओझरायल बाटमेँ सही राहके तलाश चाही

कृपा करब माँ शारदे आब नाव फँसल मँझधार
हरेक खेल जीत सकी "सुमित" के एतबे आश चाही

वर्ण-20
सुमित मिश्र

नाम जे हरेक साँसमे बसल

गजल-6

नाम जे हरेक साँसमे बसल छुपायब कोना
पूर्णिमाक चानकेँ कहू हम नुकायब कोना

सिहकल प्रेमक बसन्त करेजकेँ छूबि गेल
टूटैत सिनेहक डोरिकेँ हम गुथायब कोना

जामक नशा तँ पहर- दू-पहर साथ रहल
मुदा दौलत आ जुआनीकेँ नशा भगायब कोना

पंखुरीमे बन्न भौंरा तँ भोरे भोर मुक्त रहत
समाजक बन्हनमे अपन फर्ज निभायब कोना

समुद्रक लहरिमे पर्वत छूबैकेँ आश अछि
हुनक रूप तँ आँखिमे बसल देखायब कोना

अन्हार बाट इजोर करबाक सपना देखलौं
ढहैत जा रहल विश्वास हम उठायब कोना

दुख केर बदरी निरन्तर बरसि रहल छै
मिझाइत ममता-दीप "सुमित" जरायब कोना

वर्ण-18
सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

सहारा जामक

गजल-5

सहारा जामक जे एखन धरि जीब रहल छी 
हुनक मदिराएल नैनसँ पीब रहल छी

नव जमानाकेँ दोड़मे तरक्की तऽ बड भेटल
झाँकि देखू मोनमे करेजक गरीब रहल छी

परती खेत सन उस्सर भऽ गेल अछि जीवन
सुखाएल गाछक छाँवमे जिनगी जीब रहल छी

आब दबल जा रहल छी ममताक बोझ तऽर
उठाएब कोना भार सदिखन लीब रहल छी

गुमान छै हमरा अपन मैथिल संस्कृतिपर
आनक देखाउँस "सुमित" भाव निर्जीब रहल छी

वर्ण-18
सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

अहाँक प्रेमक खातिर सजनी

गजल-4

अहाँक प्रेमक खातिर सजनी जग भरिसँ ठुकरायल छी
नजरि फेर अहाँ देखू एक बेर सूतल नीन्न जगायल छी

बन्न नयनसँ जगकेँ देखलौँ खोइल नैन हम सपनाकेँ
बाट हमर ओ ताकैत हेता झटपट भाइग परायल छी

पैरक पायल छम छम बाजै नैन कटार हम घायल छी
आइ अहाँ संग आँखि मिचौली खेली टीस करेज समायल छी

सबेर-सबेर सूरज प्रभातक किरण लऽ आबै नित दिन
हम पतंग बस उड़ि रहल मुदा डोरि हाथ नचायल छी

दोष सबटा हमरेपर जुनि सोचि रहल बस एतबे छी
बिना तेल दीपक केर टेमी सिहैक सिहैक कऽ बुतायल छी

प्रेम सरोवरमे डूबि रहल अछि मुदा किनारा नै भेटत
"सुमित" बैस बस ताकि रहल सबटा गप फरिछायल छी

वर्ण-23
सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

बीतल समय नै घुरिक' आबै छै

गजल-3

बीतल समय नै घुरि कऽ आबै छै
सबटा लोक बैस एतबे गाबै छै

समय सँ बड़का नै कोनो खजाना
जिनगी मे जीतल जीत हराबै छै

मोल एकर जे बूझि नै सकलनि
तँ किए नहुँ-नहुँ नोर बहाबै छै

कपट द्वेष सँ मोन आन्हर अछि
आँखि मुनि भाग्य ठोकर पाबै छै

झुलसि दुपहरिया बाट चलै छै
थम्हि कऽ मीठगर राग सुनाबै छै

समय संगहि सब दौड़ लगाबै
"सुमित"कर्मक फल फरियाबै छै

वर्ण-13
सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

चंचल चमै बसंत बहि आयल

गजल-2

चंचल चलै बसंत बहि आयल
हर्षित मोन चिहुँक कहि जागल

हुनकर रूप देख मोन व्याकुल
जेना चिड़ैयाँ वाण सहि कऽ घायल

दुख केर देख मनुख किए कानै
मयूर घटा कारियो देखि नाचल

अनकर पीड़ देखि खुश होइ छी
निज दुख मे मनुख किए कानल

चाँदनी कें संग चान बहरायल
"समित" प्रेमक छटा देखि पागल

वर्ण-13
सुमित मिश्र

प्रेमक पवन बहै

गजल

प्रेमक पवन बहै दर्द हेबे करत
शीतक समीर तँ सर्द हेबे करत

बाटक दिक नै भुतिया गेलौं संसारमे
कि श्वप्नक खजाना गर्द हेबे करत

जखन भाग्यक ठोकर लागत मनुख केँ
कर्तव्य-कर्मक पथ फर्द हेबे करत

जँ बीच बजार लुटतै केकरो इज्जत
आगू बढ़ि जनानियों मर्द हेबे करत

तोड़ि देलौँ करेजक नस एक झूठ सँ
आब अपनो समांग बेदर्द हेबे करत

गामक लोक बसि रहल शहर जाकऽ
निज संबंध सुमित फर्द हेबे करत

सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर

मुदा ई की भेल

मुदा ई की भेल

केओ देखै नेट पर केओ बैसल सेट पर
केओ ताकै गेट पर केओ लागल वेट पर
आइ IIT के रिजल्ट जे निकलै बला छै
तेँ मिश्रो जी दौड़ैत चैल गेल
मुदा ई की भेल-2

एकाएक 11 बजे रिजल्ट आयल
जेधा साक्षात भगवान आयल
छात्र लोकणिक देह काँपै
जेना कतौ भूकंप आयल
सबटा तऽ फेले फेल
मुदा बिरले भेल पास
से मिश्रो जी बिरले भ गेल
मुदा ई की भेल-2

6 लाख लोन लेलक
नीक काँलेज भेलै
समय बीतैत देर नै
आब तऽB.tech भ गेलै
टोल समाज मे चर्चा छलै
सकल परिवार खुश भेल
मुदा ई की भेल-2

बहुते भागदौड़ सँ नोकरी नै भेटल
कंपनी सब जेना रुइस गेल
हारि क एगो उपाय सोचलक
चौकक बीच चाहक दोकान खूजि गेल
लोन आ आमदनी के देख काज करैत गेल
60 सालक उमर मे
लोनक 151 टाका बाकिए रहि गेल
मुदा ई की भेल-2

हे बुद्धिजीवी समाज
मिश्रा तऽ एखनो धरि सोचैयै
मुदा ई की भेल ,मुदा ई की भेल

सुमित मिश्र