सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Thursday 28 February 2013

जाऊ नहि सजनी नेह तोड़िक'

गजल-9

जाऊ नहि सजनी नेह तोड़ि कऽ
देह रहत कोना प्राण छोड़ि कऽ

काटि अहुरिया यादि बचल छै
नोर बहल अछि पीड़ जोड़ि कऽ

पटा प्रेमसँ अपन फुलवाड़ी
छीनल सपना हाथ मरोड़ि कऽ

आब अहाँ छी अनकर जीवन
सुतब हम आब कब्र कोरि कऽ

उमड़ै सागर दुख करेजमेँ
सुखलै बादल रस निचोड़ि कऽ

पागल मजनू कहै छै दुनियाँ
"सुमित" सतायल प्रीत जोड़ि कऽ

वर्ण-12

सुमित मिश्र
करियन(समस्तीपुर)

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