सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Thursday 28 February 2013

नाम जे हरेक साँसमे बसल

गजल-6

नाम जे हरेक साँसमे बसल छुपायब कोना
पूर्णिमाक चानकेँ कहू हम नुकायब कोना

सिहकल प्रेमक बसन्त करेजकेँ छूबि गेल
टूटैत सिनेहक डोरिकेँ हम गुथायब कोना

जामक नशा तँ पहर- दू-पहर साथ रहल
मुदा दौलत आ जुआनीकेँ नशा भगायब कोना

पंखुरीमे बन्न भौंरा तँ भोरे भोर मुक्त रहत
समाजक बन्हनमे अपन फर्ज निभायब कोना

समुद्रक लहरिमे पर्वत छूबैकेँ आश अछि
हुनक रूप तँ आँखिमे बसल देखायब कोना

अन्हार बाट इजोर करबाक सपना देखलौं
ढहैत जा रहल विश्वास हम उठायब कोना

दुख केर बदरी निरन्तर बरसि रहल छै
मिझाइत ममता-दीप "सुमित" जरायब कोना

वर्ण-18
सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

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