सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Thursday, 28 February 2013

सहारा जामक

गजल-5

सहारा जामक जे एखन धरि जीब रहल छी 
हुनक मदिराएल नैनसँ पीब रहल छी

नव जमानाकेँ दोड़मे तरक्की तऽ बड भेटल
झाँकि देखू मोनमे करेजक गरीब रहल छी

परती खेत सन उस्सर भऽ गेल अछि जीवन
सुखाएल गाछक छाँवमे जिनगी जीब रहल छी

आब दबल जा रहल छी ममताक बोझ तऽर
उठाएब कोना भार सदिखन लीब रहल छी

गुमान छै हमरा अपन मैथिल संस्कृतिपर
आनक देखाउँस "सुमित" भाव निर्जीब रहल छी

वर्ण-18
सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

No comments:

Post a Comment