सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Thursday 28 February 2013

प्रेमक पवन बहै

गजल

प्रेमक पवन बहै दर्द हेबे करत
शीतक समीर तँ सर्द हेबे करत

बाटक दिक नै भुतिया गेलौं संसारमे
कि श्वप्नक खजाना गर्द हेबे करत

जखन भाग्यक ठोकर लागत मनुख केँ
कर्तव्य-कर्मक पथ फर्द हेबे करत

जँ बीच बजार लुटतै केकरो इज्जत
आगू बढ़ि जनानियों मर्द हेबे करत

तोड़ि देलौँ करेजक नस एक झूठ सँ
आब अपनो समांग बेदर्द हेबे करत

गामक लोक बसि रहल शहर जाकऽ
निज संबंध सुमित फर्द हेबे करत

सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर

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