सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Friday, 1 November 2019

अब से तेरा हुआ

अब से तेरा हुआ लो वादा दे दिया तुमको
मैं पूरा कहाँ बचा हूँ आधा दे दिया तुमको

अब तो जगह ही नहीं कोई कैसे आ पाएगा
अपने दिल का हरेक हिस्सा दे दिया तुमको

इतना प्यासा हूँ कि ओस चाटता फिरता हूँ
कुछ करो तो यार मैंने दरिया दे दिया तुमको

कितनी दिलकश हो ये तो कह नहीं सकता
मैंने तो खुद को आईना बना दे दिया तुमको

मैं जब रुठता हूँ सुमित कोई मनाता भी नहीं
अब कौन फिक्र करे जो भी था दे दिया तुमको

©सुमित मिश्र गुंजन

2 comments:

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