सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Thursday, 12 May 2016

लप्रेक-1

लप्रेक (लघु प्रेम कथा)

रे राज!इ की क' लेलहीं?राजके हाथ पर घाव देखिक' सोनी चिहुँकि उठल।

राज हँसिक' बाजल- कोनो घबड़ेबाक बात नै अछि।हम अप्पन हाथ पर तोहर नाम लिखलहुँ अछि,ई हम्मर प्रेमक निशानी अछि।एकरा देखिक' हमरा तोहर प्रेमक यादि ताज़ा भ' जाइत अछि।

सोनी सिसक' लागल।हमरा नै बुझल छल,जे प्रेमक मोन  पारय  दुआरे कोनो निशानी चाही। माय कहैत छल,प्रेम त' आत्मामें बसल होइत अछि।

सुमित मिश्र "गुंजन"
करियन,समस्तीपुर

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