सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Thursday 19 May 2016

लप्रेक -5

लप्रेक (लघु प्रेम कथा) - 5

- चलु काया , दुनुगोटे भागिक' बियाह क' लैत छी। इ टोल-समाज हमर प्रेमके नञि सकारि सकैत अछि।
- एना किए कहै छी अनुज। हम कोनो पाप थोड़बे केलहुँए।
- हमर कह'क तात्पर्य इ अछि जे जँ अहाँ चाहैत छी जे अप्पन प्रेम सफल होइ त' आइ इ डेग उठाबहे पड़त।
- की भेलै जँ अहाँ आन जातिक छी? आब सभटा जाति समान अछि ,भेदभाव खतम भ' गेल अछि। अहाँ हमरा चाहैत छी ,हम अहाँक चाहैत छी। जँ हमरा दुनुगोटेक कोनो परेशानी नञि अछि, तखन इ समाजके एहिसँ कोन हर्जा?
- अहाँ बड मासूम छी काया। समाजक छल-परपञ्च नञि बुझैत छी। इ जाति-पाति ,स्वतंत्रता ,समता सभक गप्प केवल सुनैएमे नीक लगैछ ,धरातल पर आइयो धरि इ मान्य नै छै। समाजक ठेकेदार ल'ग इ सभ महत्वहीन अछि।

दुनू एकदोसरक हाथ कसि क पकड़ि लेलक आ अनिश्चित गंतव्य दिस विदा भ' गेल।

© सुमित मिश्र ''गुंजन"
करियन ,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

No comments:

Post a Comment