कविता
संस्कृतिक तिलांजलि
हकार दैत अछि
आधुनिकता
आऊ
फुँकि लिय' सभ्यताके
डाहि लिय' संस्कृतिके
तकरा बाद
ओकरे चिता पर बसाबू
एकटा नव दुनिया
जत्त' नञि होइ
समाजक बंधन
लोक- लेहाज
ओतए केवल क्षुधा होइ
मनुखके मारबाक क्षुधा
मशीन बनेबाक क्षुधा
ठीके सुनलहुँ
हकार अछि
आऊ
सभगोटे अपन संस्कृतिके
तिलांजलि दै छी
© सुमित मिश्र ''गुंजन''
करियन ,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179
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