सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Thursday, 12 May 2016

लप्रेक-4

लप्रेक (लघु प्रेम कथा)

अनामिका आ पियूष दुनू दुइभ पर कचनार त'र बैसल छल। गाछीमे बहुत रास फूलक गाछ लागल छलै।अनामिका आ पियूष एक-दोसरक हाथमे हाथ राखने फूल सभके निहारि रहल छल। की ने की फुरेलै अनामिकाके ,ओ बाजलि-

-पियूष,ह'म अहाँके केहन लागैत छी ?
-स्वर्गक अप्सरा सन सुन्नरि,नदीक धार सन चंचला।
-आ हम्मर रुप………
-अहाँक रुप आँखि चोन्हरेबाक आतुर बिजुरी सन लागैछ।अहाँक केश बुझना जाइछ जेना कि इ घटा सौंसे आकाशके आच्छादित क' देत।अहाँक बोली लागैछ जेना कतौ  सुरमयी संगीत टेर देल गेल छै।
-हमर प्रेम केहन सन बुझाइत अछि,पियूष?
-आह…… इ की पूछि देलहुँ,अनामिका हमर करेज दरकि गेल।कहु त' ह'म अहाँक प्रेमक तुलना कोना क' सकै छी।एकरा त' शब्दमे नञि बान्हल जा सकैछ,इ अतुलनीय छैक।

अनामिका पियूषक बात सुनि कतौ हेरा गेली ।कचनार झहर' लागलै,मीठगर बसात सिहक' लागलै जेना ओ सब हुनकर बातक अनुमोदन करति होइ।

सुमित मिश्र "गुंजन"
सम्पर्क - 8434810179

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