सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .

Thursday, 12 May 2016

लप्रेक-2

लप्रेक (लघु प्रेम कथा) -2

रश्मि आइ भिनसरेसँ घ'रक साफ-सफाई में व्यस्त छली,कारण जे हुनकर पति जयंत एक मास दिल्लीमे कंपनीक काजसँ रहलाक उपरांत वापस आबि रहल छथि।हुनक मोन मोर जकाँ नाचि रहल छल। ओ सोचैत छली जे आइ जयंतसँ रुइस जेती आ जयंत बौंसैके लेल अनेकानेक प्रयास करत मुदा ओ दृढ़ बनल रहती। फेर जखन हारिक' जयंतक मुँह लटकि जेतै त' ओ भभाक' हँस' लगती।

रश्मि एहि गुन-धुन लागले छली कि हुनक नजरि एकटा पुरना पेटी पर गेलै। पेटी फोलिक' देखल त' ओहीमे किछ रद्दी आ एकटा डायरी छल। देखबासँ बुझाइत छल जे एकरा बेस सम्हारिक' राखल गेल छै।जिज्ञासावश रश्मि डायरीक पन्ना उनटाब' लागली। पहिल पन्ना उनटाबिते रश्मिक करेज धक्कसँ रहि गेल।समूचा देहमे जेना विद्युत प्रवाहित हुअ' लगलै,माथ झनझना उठल। 
पन्नामे लिखल छलै ,"हमर प्राणप्रिये, चंदा। अहाँक यादि सदिखनि हमरा हिलकोरैत रहैत अछि। जहियासँ अहाँ भेटलहुँ ,हम  अहींमे हेरायल छी।अहाँक प्रेममे हम उनमत्त भ' गेल छी। अहाँक केश,मेघ सनक मदिरायल नयन,दू देहके समाब' लेल व्याकुल बाहुपाश, बुझना जाइछ जे यैह सृष्टि थिक,चंदा।अहाँ बिन हमर कोनो आस्तित्व नञि।
केवल अहींके जयंत।"

रश्मिके मोनमे बहुत रास प्रश्न उठ' लागलै।की जयंत एहन विश्ववासघात क' सकैत छथि?कि हुनकर जीवनमे केओ और छै?कि हुनकर प्रेम प्रेम नञि ढ़ोंग अछि? 
ता धरि दरबज्जा पर केकरो आहट भेलै।शायद जयंत आबि गेला।आइ हुनकासँ हम तलाकक बात करबे करब। हमरा फुसियाहा प्रेम नञि चाही। जयंत कोठलीमे आबि गेला आ आबिते रश्मिके टोकला।
-अहाँ एना किएक मुँह लटकौने छी?की भेल?
-हमर सभटा संपत्ति हेरा गेल।
-से की हेरा गेल?
-हमर विश्वास,प्रेम,सिंदूर सभ किछु।
-अहाँ फरिछाक' कहू,हम नञि बुझि रहल छी।
-(डायरीक पन्ना देखाक') इ कि छैक?
-जा!इ अहाँके कत्तसँ भेटल।इ हमर पर्सनल डायरी अछि।
-आ इ अहाँक प्राणप्रिये चंदा के थिक?
-हा हा हा… नञि चिन्हलहुँ ,इ अहीँ छी।हम्मर कल्पनाक चंदा अर्थात अहाँ,हमर रश्मि।

रश्मि अचंभित भ' गेली। ओ झट द' जयंतसँ लिपटि गेली,बुझाइछ जे दुनू देह एक भ' जायत। आइ कोनो बान्ह इ प्रेमक धाराके नञि रोकि सकैछ,सभटा बान्ह उपटि जेतै……।

सुमित मिश्र "गुंजन"
करियन,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

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