गजल-14
छी दूर मुदा आँखिमे रहू प्रिय
आबि कऽ सपनामे जगबू प्रिय
नै दिन नै राति बुझै मनवाँ
आब विरहक दर्द सहू प्रिय
फागुन मास रंगीन छै दुनियाँ
अहाँ बेरंग किए छी कहू प्रिय
सुन्न लागै अपन घर आँगन
आयब कहिया सेहो लिखू प्रिय
आबि गेल फगुआ कतऽ छी अहाँ
मिसियो भरि रंग लगाबू प्रिय
बाट अहींके बाट तकैत अछि
"सुमित" कहै झटसँ आबू प्रिय
वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर
सुमित मिश्र 'गुंजन'
Wednesday, 20 March 2013
Friday, 15 March 2013
नवका रंगमे रंगा रहल छै
गजल-13
नवका रंगमे रंगा रहल छै
अपनों लोकसँ डेरा रहल छै
बिसरि जाऊ सब बाग बगीचा
सबटा सपना उड़ा रहल छै
माँटि बनल आब गरदा देखू
अप्पन जिनगी जड़ा रहल छै
कतऽ छै कल-कल निर्मल धारा
छोड़ि संग सब पड़ा रहल छै
मोन कलपै छै समय देख कऽ
नीर नैन आब चोरा रहल छै
"सुमित" चाहत प्रेम सदिखन
डोरि सिनेहक जोड़ा रहल छै
वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन,समस्तीपुर
नवका रंगमे रंगा रहल छै
अपनों लोकसँ डेरा रहल छै
बिसरि जाऊ सब बाग बगीचा
सबटा सपना उड़ा रहल छै
माँटि बनल आब गरदा देखू
अप्पन जिनगी जड़ा रहल छै
कतऽ छै कल-कल निर्मल धारा
छोड़ि संग सब पड़ा रहल छै
मोन कलपै छै समय देख कऽ
नीर नैन आब चोरा रहल छै
"सुमित" चाहत प्रेम सदिखन
डोरि सिनेहक जोड़ा रहल छै
वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन,समस्तीपुर
Monday, 11 March 2013
नै कहू कखनो
गजल-12
नै कहू कखनो पहाड़ छै जिनगी
दैबक देलहा उधार छै जिनगी
भारी छै लोकक मनोरथक भार
कनहा लगौने कहार छै जिनगी
आशा निराशासँ कठिन बाट अछि
समय छै लगाम सवार छै जिनगी
विधना खेलथि खेल मनुख संग
खन इजोर वा अन्हार छै जिनगी
चलत निरंतर कर्मक नाहपर
कल-कल बहैत धार छै जिनगी
लिए मजा जुनि भेंटत दोबारा
"सुमित" सुधाकें फुहाड़ छै जिनगी
वर्ण-13
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर
नै कहू कखनो पहाड़ छै जिनगी
दैबक देलहा उधार छै जिनगी
भारी छै लोकक मनोरथक भार
कनहा लगौने कहार छै जिनगी
आशा निराशासँ कठिन बाट अछि
समय छै लगाम सवार छै जिनगी
विधना खेलथि खेल मनुख संग
खन इजोर वा अन्हार छै जिनगी
चलत निरंतर कर्मक नाहपर
कल-कल बहैत धार छै जिनगी
लिए मजा जुनि भेंटत दोबारा
"सुमित" सुधाकें फुहाड़ छै जिनगी
वर्ण-13
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर
जरि-जरि ओ इजोर करै छै
गजल-11
जरि-जरि ओ इजोर करै छै
अंत-अंत धरि नोर खसै छै
धनके बल सँ उड़ैत अछि
पैर धरा पर राखि चलै छै
मुँह पर हँसीके मुखौटा सँ
पीड़ करेजमे दाबि रहै छै
दौड़ एहन दौड़ नै सकलौँ
समयोके समय यादि रखै छै
साँच सभसँ भरिगर पाप
उलटा गंगा धार बहै छै
देब कोना आब शिक्षा केकरो
आन्हरो पोथी खोलि पढै छै
गाम डुबायल चिन्ता नै अछि
माँथहि तगमा साटि चलै छै
मोनक गप्प मोनहि राखल
"सुमित" शब्दमेँ बान्हि कहै छै
वर्ण-11
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर
जरि-जरि ओ इजोर करै छै
अंत-अंत धरि नोर खसै छै
धनके बल सँ उड़ैत अछि
पैर धरा पर राखि चलै छै
मुँह पर हँसीके मुखौटा सँ
पीड़ करेजमे दाबि रहै छै
दौड़ एहन दौड़ नै सकलौँ
समयोके समय यादि रखै छै
साँच सभसँ भरिगर पाप
उलटा गंगा धार बहै छै
देब कोना आब शिक्षा केकरो
आन्हरो पोथी खोलि पढै छै
गाम डुबायल चिन्ता नै अछि
माँथहि तगमा साटि चलै छै
मोनक गप्प मोनहि राखल
"सुमित" शब्दमेँ बान्हि कहै छै
वर्ण-11
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर
भक्ति गजल
भक्ति गजल-1
हम निर्बुद्धि-पापी बैसल कानै छी
पुत्र अहीँके जननी क्षमा माँगै छी
तोहर दुआरि बड भीड़ हे मैया
कखन देब दर्शन आब हारै छी
अष्टभुजा नवरुप जगदम्बिके
दशो दिशा विभूषित अहाँ साजै छी
ममतामयी झट दया-दृष्टि करु
नाव भँवरसँ दुःखियाके उबारै छी
अरहुल फूल आ ललका चुनरी
असुर विनासिनी जगके तारै छी
"सुमित" बालक जुनि ज्ञान हे दुर्गे
चरण बैसिकऽ गीत अहीँके गाबै छी
वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर
हम निर्बुद्धि-पापी बैसल कानै छी
पुत्र अहीँके जननी क्षमा माँगै छी
तोहर दुआरि बड भीड़ हे मैया
कखन देब दर्शन आब हारै छी
अष्टभुजा नवरुप जगदम्बिके
दशो दिशा विभूषित अहाँ साजै छी
ममतामयी झट दया-दृष्टि करु
नाव भँवरसँ दुःखियाके उबारै छी
अरहुल फूल आ ललका चुनरी
असुर विनासिनी जगके तारै छी
"सुमित" बालक जुनि ज्ञान हे दुर्गे
चरण बैसिकऽ गीत अहीँके गाबै छी
वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर
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