का करें इश्क की दवा थोड़े है
साँसों में उतार लें हवा थोड़े है
उसपर क्यों ना उठाऊँ उँगलियाँ
कातिल है मेरा हमनवाँ थोड़े है
मैं खुद ही लुटा हूँ क्या दूँगा तुझे
फकीरों की बस्ती है दूकाँ थोड़े है
कहती हो बहुत प्यार है हमसे
कैसे मान लें भई जुबाँ थोड़े है
वो कहाँ सागर ढूँढते हो बेवकूफों
उसकी आँखें यहाँ हैं वहाँ थोड़े है
इश्क की मंडी में कईं धनपति हैं
हम फुटकर हैं पूँजी जमा थोड़े है
© सुमित मिश्र 'गुंजन'