सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .
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Friday, 1 November 2019

अब से तेरा हुआ

अब से तेरा हुआ लो वादा दे दिया तुमको
मैं पूरा कहाँ बचा हूँ आधा दे दिया तुमको

अब तो जगह ही नहीं कोई कैसे आ पाएगा
अपने दिल का हरेक हिस्सा दे दिया तुमको

इतना प्यासा हूँ कि ओस चाटता फिरता हूँ
कुछ करो तो यार मैंने दरिया दे दिया तुमको

कितनी दिलकश हो ये तो कह नहीं सकता
मैंने तो खुद को आईना बना दे दिया तुमको

मैं जब रुठता हूँ सुमित कोई मनाता भी नहीं
अब कौन फिक्र करे जो भी था दे दिया तुमको

©सुमित मिश्र गुंजन

Thursday, 31 October 2019

एक बेकार प्रेम कविता-बिहार संपर्क क्रांति में

प्रेम क्या है- पता नहीं
प्रेम क्यों है- पता नहीं
पता तो केवल इतना है यार
कि जब कभी प्रेम किया जाता है
अन्य बातों का कोई मतलब नहीं रह जाता

एक दिन प्रेम में किसी लड़के ने कह दिया
वह अपनी प्रिये को दुनिया की भीड़ में भी खोज लेगा
ये अलग बात है कि
बिहार संपर्क क्रांति में उस लड़की को ढूंढने में
उसने पूरे 27 मिनट खर्च कर दिये

ट्रेन में बहुत सारे लोग थे
बहुत सारी आंखें
उन आंखों में चार आंखें ऐसी भी थीं
जिन्हें दूसरों की आंखों से कोई डर नहीं
आंख हृदय में उतरने की खिड़की होता है दोस्त
खिड़की खुली भी
हृदय में उतरा भी गया

दो आंखों की मजबूरियां थी
उससे बाहर आकर दोनों ने प्रेम भरी बातें की
चाय पीते समय
लड़के को चाय अधिक मीठी लगी थी
उसने महसूस किया कि
सूरज की लाल किरणें
उसके हाथों को छूती हुई
लड़की के माथे पर खत्म होती है
मानो जैसे लड़की सिनुरिया हो गई
एक लाल साड़ी वाली औरत ने
इस कहानी को समझने का खूब प्रयास किया
और थककर सो गई

यात्राएं खत्म होने के लिए ही शुरू होती हैं
प्रेमी सोचता रहा
कैसे कहेगा अलविदा
प्रेमिका सोचती रहेगी 
कैसे कहेगी शुभ विदा
सोचते-सोचते समस्तीपुर आ गई
दोनों चल पड़े
फिर से मिलने की मौन स्वीकृति के साथ
बिना कहे
बिना सुने
ठीक उसी तरह से
जैसे कि देह से प्राण जाया करती है अक्सर

आप जानना चाहते होंगे कि-
लड़का कौन था
लड़की कौन थी
अब छोड़िए भी
क्या फर्क पड़ता है इन बातों का
रोज चलती है बिहार संपर्क क्रांति
रोज आता है समस्तीपुर
अपनी बाहों में भर लें
या फिर लें एक चुंबन
कह दे अपने दिल की बात
इन्हीं फालतू की बातों में उलझा हुआ
प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर खड़ा कोई लड़का
रोज कहता है किसी लड़की को अलविदा

अलविदा केवल कहने की बातें हैं
इसलिए कह दी जाती हैं आसानी से
बहुत सारी बातों की तरह
मैं सच बताऊं
जब कोई लड़का किसी लड़की के दिल में उतर चुका होता है
कोई लड़की किसी लड़के के दिल में उतर चुकी होती है
तब विदा नहीं कहा जा सकता
एक दूसरे से दूर नहीं हुआ जा सकता
जैसे कि दूर नहीं होता है
शराब का नशा
सिगरेट की लत
पैसों की खुमारी
या फिर तंबाकू का तलब

समस्तीपुर स्टेशन पर अलविदा कहते वक्त
एक प्रेमी छूट जाता है प्रेमिका में
एक प्रेमिका छूट जाती है प्रेमी में
एक ट्रेन निकल जाती है दिल्ली की ओर
वे दोनों चले जाते हैं अपने अपने शहर
फिर चलेगी बिहार संपर्क क्रांति
फिर आएगी समस्तीपुर
फिर होगी इतनी ही बातें
फिर से कोई कवि लिखेगा
एक बेकार सी प्रेम कविता

©सुमित मिश्र गुंजन

Wednesday, 2 January 2019

प्रिये

बहुत मुश्किल है
समय के समांतर खड़ा होना
जैसे कि-
आंधी के सामने तिनकों का टिके रहना
मैं लंबे द्वंद के बाद
थक कर बैठ जाता हूं

मुझे लगता है कि
हवाओं के नाखून निकल आए हैं
जमीन तपने लगी है
आकाश और अधिक भारी हो गया है
संग ही पानी अपना नमी खो चुका है
कितना कड़वा होता है यथार्थ!
स्वप्न के सदाबहार जंगल से एकदम परे

जब तमाम बातें
हावी होने लगती है मेरे वजूद पर
जब,
निःशब्दता के दलदल में
गहरा धसता चला जाता हूं मैं
तब तुम आती हो प्रिये
मीठी मुस्कुराहट लिए हुए
मैं भूल जाता हूं सब कुछ
और तुम्हें चॉकलेट कह कर पुकारता हूं
तुम मेरे हाथ में हाथ डालकर
मेरा फेवरेट गीत गुनगुनाती हो
मैं संगीत के उतार-चढ़ाव में
धड़कन को महसूस करता रहता हूं

तुम्हारे होने से पूर्णता का अहसास होता है
जैसे चाँद को देखकर जुगनू हौसला पाता हो
तुम जो जिद करती हो
कि एक कविता लिखूँ तुम्हारे लिए
अब कैसे कहूँ प्रिये
कईं दिनों से कुछ लिखा ही नहींं
तुम्हारे सिवा

©सुमित मिश्र 'गुंजन'

Wednesday, 31 October 2018

का करें इश्क की दवा थोड़े है

का करें इश्क की दवा थोड़े है
साँसों में उतार लें हवा थोड़े है

उसपर क्यों ना उठाऊँ उँगलियाँ
कातिल है मेरा हमनवाँ थोड़े है

मैं खुद ही लुटा हूँ क्या दूँगा तुझे
फकीरों की बस्ती है दूकाँ थोड़े है

कहती हो बहुत प्यार है हमसे
कैसे मान लें भई जुबाँ थोड़े है

वो कहाँ सागर ढूँढते हो बेवकूफों
उसकी आँखें यहाँ हैं वहाँ थोड़े है

इश्क की मंडी में कईं धनपति हैं
हम फुटकर हैं पूँजी जमा थोड़े है

© सुमित मिश्र 'गुंजन'

Thursday, 26 May 2016

भिखमंगा

कविता

भिखमंगा

एहन पुष्टगर देह
कमेबहीं से नञि
लोक लेहाज उठा लेलहीं
चल आबै छहीं
हाथ पसारने

देखू त'
नीक व्यवसाय बनेने अछि
एकटा गुदरी ओढ़ि
हाथ पसारने
एक-दू टा कैंचा लेल
गोहारि करैत अछि

लोक एनाहिते कहतै
भिखमंगाक कोन पुछारि
ओकर बोलीमे छलकैत
वेदनाके कियो नञि सुनैछ

बुझना जाइछ
गतिशील ट्रेनमे
मनुख गतिहीन अछि
मोन चेतना- शून्य अछि

© सुमित मिश्र ''गुंजन''
करियन ,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

Sunday, 22 May 2016

खुनिया आरि

कविता

खुनिया आरि

त्रेतायुगक बात अछि
लक्ष्मण एकटा रेख बनेने छला
रावणके रोकबाक लेल
सीताके बचेबाक लेल

आइ कलयुगमे
रेख त' वैह अछि
परञ्च
रामके रोकबाक लेल
स्वार्थके बचेबाक लेल

इ रेख ,इ आरि
बनाओल गेल अछि
पुरखाक स्वप्नके
कोरि - कारि क'
एकर आगाँ
मानवता,भाईचारा,प्रेम
सबकिछु हीन अछि

एहि आरिक परंपरा
पीढ़ी दर पीढ़ी
निमाहल जैत
लक्ष्मणके जीबैत
कोनो राम
नञि टपि सकै छथि
इ खुनिया रेखके, आरिके

© सुमित मिश्र ''गुंजन''
करियन, समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

Saturday, 21 May 2016

संस्कृतिक तिलांजलि

कविता

संस्कृतिक तिलांजलि

हकार दैत अछि
आधुनिकता
आऊ
फुँकि लिय' सभ्यताके
डाहि लिय' संस्कृतिके

तकरा बाद
ओकरे चिता पर बसाबू
एकटा नव दुनिया
जत्त' नञि होइ
समाजक बंधन
लोक- लेहाज
ओतए केवल क्षुधा होइ
मनुखके मारबाक क्षुधा
मशीन बनेबाक क्षुधा

ठीके सुनलहुँ
हकार अछि
आऊ
सभगोटे अपन संस्कृतिके
तिलांजलि दै छी

© सुमित मिश्र ''गुंजन''
करियन ,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

Friday, 20 May 2016

नारी सशक्तिकरण

कविता

नारी सशक्तिकरण

कखनो माय,बाप या भाइ
त' कखनो पति या संतति
सदिखनि अप्पन पहचान लेल
आन पर आश्रित रहैछ
ओ नारि छै ने

एहि पुरुष प्रधान समाजमे
अपन आस्तित्व हेरैछ
खन काल
समताके भ्रम होइ
परञ्च अगिले क्षण
भ्रम टूटि जाइ छै

करेज पाथर क' लिय'
कियो अहाँके नञि सुनत
अहाँक संग सदिखनि अन्याय भेलए
शाइद आगुओ हैत
त' जागू
अप्पन स्थान
स्वयं सुरक्षित करु
कियो संग नञि देत

एखन त'
नारी सशक्तिकरण
एकटा व्यंग्य बुझाइत अछि।

© सुमित मिश्र ''गुंजन"
करियन ,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

Thursday, 19 May 2016

लप्रेक -5

लप्रेक (लघु प्रेम कथा) - 5

- चलु काया , दुनुगोटे भागिक' बियाह क' लैत छी। इ टोल-समाज हमर प्रेमके नञि सकारि सकैत अछि।
- एना किए कहै छी अनुज। हम कोनो पाप थोड़बे केलहुँए।
- हमर कह'क तात्पर्य इ अछि जे जँ अहाँ चाहैत छी जे अप्पन प्रेम सफल होइ त' आइ इ डेग उठाबहे पड़त।
- की भेलै जँ अहाँ आन जातिक छी? आब सभटा जाति समान अछि ,भेदभाव खतम भ' गेल अछि। अहाँ हमरा चाहैत छी ,हम अहाँक चाहैत छी। जँ हमरा दुनुगोटेक कोनो परेशानी नञि अछि, तखन इ समाजके एहिसँ कोन हर्जा?
- अहाँ बड मासूम छी काया। समाजक छल-परपञ्च नञि बुझैत छी। इ जाति-पाति ,स्वतंत्रता ,समता सभक गप्प केवल सुनैएमे नीक लगैछ ,धरातल पर आइयो धरि इ मान्य नै छै। समाजक ठेकेदार ल'ग इ सभ महत्वहीन अछि।

दुनू एकदोसरक हाथ कसि क पकड़ि लेलक आ अनिश्चित गंतव्य दिस विदा भ' गेल।

© सुमित मिश्र ''गुंजन"
करियन ,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

Tuesday, 17 May 2016

चिरनिद्रा

कविता

चिरनिद्रा

हमर मोनक कोनमे
प्रज्ज्वलित एकटा दीप
मद्धिम इजोत
किछ फरीछ नञि
चिरकाल सँ
अकाइन रहल छी
ककरो पदचाप

जी अकच्छ भ' गेल
आँखिक नोर सुखा गेल
मुदा एखनो धरि
हम दीप जरौने छी
आश बाचल अछि
कियो त' औता
एहि बूढ़के 
सुधि लेब'क लेल

मार बाढ़नि
कियो नञि आयत
मोन होइछ
मिझाक' दीप
सुति रहै छी
चिर निद्रामे।

© सुमित मिश्र ''गुंजन"
करियन ,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

Friday, 13 May 2016

कोठी भरल छै जिनकर

गजल- 16

कोठी भरल छै जिनकर भगवान सब कहैये
शोणित जे अपन जराबए इंसान सब कहैये

भेटए एत्त' नहि सज्जन अगबे दुष्ट सहसह
पाथर करेज जिनकर धनवान सब कहैये

कहलहुँ जे आबि बैसियौ दू क्षण समय माँगै छी
जे अपनो छल नहि कहने ओ आन सब कहैये

केहन रचल इ विधना अजगुत बड बुझाइए
हम सबहक मान राखलहुँ बैमान सब कहैये

केऊ कहितए मीठ बोली त' जिनगी धन्य बुझितौं
इ देखहीं सुमित घरमे दरबान सब कहैये

वर्ण - 19

सुमित मिश्र "गुंजन"
करियन,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

Thursday, 12 May 2016

लप्रेक-4

लप्रेक (लघु प्रेम कथा)

अनामिका आ पियूष दुनू दुइभ पर कचनार त'र बैसल छल। गाछीमे बहुत रास फूलक गाछ लागल छलै।अनामिका आ पियूष एक-दोसरक हाथमे हाथ राखने फूल सभके निहारि रहल छल। की ने की फुरेलै अनामिकाके ,ओ बाजलि-

-पियूष,ह'म अहाँके केहन लागैत छी ?
-स्वर्गक अप्सरा सन सुन्नरि,नदीक धार सन चंचला।
-आ हम्मर रुप………
-अहाँक रुप आँखि चोन्हरेबाक आतुर बिजुरी सन लागैछ।अहाँक केश बुझना जाइछ जेना कि इ घटा सौंसे आकाशके आच्छादित क' देत।अहाँक बोली लागैछ जेना कतौ  सुरमयी संगीत टेर देल गेल छै।
-हमर प्रेम केहन सन बुझाइत अछि,पियूष?
-आह…… इ की पूछि देलहुँ,अनामिका हमर करेज दरकि गेल।कहु त' ह'म अहाँक प्रेमक तुलना कोना क' सकै छी।एकरा त' शब्दमे नञि बान्हल जा सकैछ,इ अतुलनीय छैक।

अनामिका पियूषक बात सुनि कतौ हेरा गेली ।कचनार झहर' लागलै,मीठगर बसात सिहक' लागलै जेना ओ सब हुनकर बातक अनुमोदन करति होइ।

सुमित मिश्र "गुंजन"
सम्पर्क - 8434810179

लप्रेक-3

लप्रेक (लघु प्रेम कथा) 

बरियाती दरबज्जा लागि गेल छै , घरबैया सभ स्वागत करबाक लेल ठाढ़ छथि। सभहक मोन हुलसित अछि मुदा एहि परिधिमे दू टा लोक एहनो जे व्यथित छथि। पहिल छथि बियाही साड़ीमे दुखक वेगके सम्हारने निशा आ दोसर छथि डूगल ग्लास त'र नोर नुकौने मयंक।

काल्हि साँझ दुनू मनोकामना मंदिरमे भेंटल छलथि। मयंक कहने छल-
-की दुनू गोटेक हाथे प्रज्वलित कएल अपन प्रेम दीप काल्हि मिझा जैत?
-हँ मुदा मयंक ,हम अहाँक बिसरि थोड़बे सकैत छी।
-तखन अहाँ हमर प्रेम आ अपन पतिके प्रेम दुनू संग न्याय कोना क' सकै छी?
-नञि मयंक एना नै बाजू।देह नश्वर अछि मुदा प्रेम त' शाश्वत होइत छैक। हम अहाँसँ दैहिक प्रेम नञि केने छी। हम अहाँके आजीवन चाहैत रहब। जखन कखनो प्रेमक तराजू पर अहाँक पक्ष हल्लुक हैत,हम पासङ बनि अहाँके मान राखब।
निशाक एहि उत्तरक आगाँ मयंक निरुत्तर भ' गेल छल।

ब'र निशाक माँग सेनूरसँ भरि रहल अछि आ मयंक डूगल ग्लासक त'रसँ तराजूके पल्लामे पासङ बदलैत देखि रहल अछि।

सुमित मिश्र "गुंजन"
सम्पर्क - 8434810179

लप्रेक-2

लप्रेक (लघु प्रेम कथा) -2

रश्मि आइ भिनसरेसँ घ'रक साफ-सफाई में व्यस्त छली,कारण जे हुनकर पति जयंत एक मास दिल्लीमे कंपनीक काजसँ रहलाक उपरांत वापस आबि रहल छथि।हुनक मोन मोर जकाँ नाचि रहल छल। ओ सोचैत छली जे आइ जयंतसँ रुइस जेती आ जयंत बौंसैके लेल अनेकानेक प्रयास करत मुदा ओ दृढ़ बनल रहती। फेर जखन हारिक' जयंतक मुँह लटकि जेतै त' ओ भभाक' हँस' लगती।

रश्मि एहि गुन-धुन लागले छली कि हुनक नजरि एकटा पुरना पेटी पर गेलै। पेटी फोलिक' देखल त' ओहीमे किछ रद्दी आ एकटा डायरी छल। देखबासँ बुझाइत छल जे एकरा बेस सम्हारिक' राखल गेल छै।जिज्ञासावश रश्मि डायरीक पन्ना उनटाब' लागली। पहिल पन्ना उनटाबिते रश्मिक करेज धक्कसँ रहि गेल।समूचा देहमे जेना विद्युत प्रवाहित हुअ' लगलै,माथ झनझना उठल। 
पन्नामे लिखल छलै ,"हमर प्राणप्रिये, चंदा। अहाँक यादि सदिखनि हमरा हिलकोरैत रहैत अछि। जहियासँ अहाँ भेटलहुँ ,हम  अहींमे हेरायल छी।अहाँक प्रेममे हम उनमत्त भ' गेल छी। अहाँक केश,मेघ सनक मदिरायल नयन,दू देहके समाब' लेल व्याकुल बाहुपाश, बुझना जाइछ जे यैह सृष्टि थिक,चंदा।अहाँ बिन हमर कोनो आस्तित्व नञि।
केवल अहींके जयंत।"

रश्मिके मोनमे बहुत रास प्रश्न उठ' लागलै।की जयंत एहन विश्ववासघात क' सकैत छथि?कि हुनकर जीवनमे केओ और छै?कि हुनकर प्रेम प्रेम नञि ढ़ोंग अछि? 
ता धरि दरबज्जा पर केकरो आहट भेलै।शायद जयंत आबि गेला।आइ हुनकासँ हम तलाकक बात करबे करब। हमरा फुसियाहा प्रेम नञि चाही। जयंत कोठलीमे आबि गेला आ आबिते रश्मिके टोकला।
-अहाँ एना किएक मुँह लटकौने छी?की भेल?
-हमर सभटा संपत्ति हेरा गेल।
-से की हेरा गेल?
-हमर विश्वास,प्रेम,सिंदूर सभ किछु।
-अहाँ फरिछाक' कहू,हम नञि बुझि रहल छी।
-(डायरीक पन्ना देखाक') इ कि छैक?
-जा!इ अहाँके कत्तसँ भेटल।इ हमर पर्सनल डायरी अछि।
-आ इ अहाँक प्राणप्रिये चंदा के थिक?
-हा हा हा… नञि चिन्हलहुँ ,इ अहीँ छी।हम्मर कल्पनाक चंदा अर्थात अहाँ,हमर रश्मि।

रश्मि अचंभित भ' गेली। ओ झट द' जयंतसँ लिपटि गेली,बुझाइछ जे दुनू देह एक भ' जायत। आइ कोनो बान्ह इ प्रेमक धाराके नञि रोकि सकैछ,सभटा बान्ह उपटि जेतै……।

सुमित मिश्र "गुंजन"
करियन,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

लप्रेक-1

लप्रेक (लघु प्रेम कथा)

रे राज!इ की क' लेलहीं?राजके हाथ पर घाव देखिक' सोनी चिहुँकि उठल।

राज हँसिक' बाजल- कोनो घबड़ेबाक बात नै अछि।हम अप्पन हाथ पर तोहर नाम लिखलहुँ अछि,ई हम्मर प्रेमक निशानी अछि।एकरा देखिक' हमरा तोहर प्रेमक यादि ताज़ा भ' जाइत अछि।

सोनी सिसक' लागल।हमरा नै बुझल छल,जे प्रेमक मोन  पारय  दुआरे कोनो निशानी चाही। माय कहैत छल,प्रेम त' आत्मामें बसल होइत अछि।

सुमित मिश्र "गुंजन"
करियन,समस्तीपुर

Monday, 15 February 2016

है लगी ये आग कैसी

गजल

है लगी ये आग कैसी खाक भी जलने लगे हैं
आप की परवाह किसको बेख़बर रहने लगे हैं

रात का पसरा सन्नाटा रुह भी है काँपती
जाम के दो घूँट पीकर दर्द को सहने लगे हैं

है ये दुनिया कातिलाना खून अपने चूसते हैं
हाथ में खंजर छुपाए वो गले लगने लगे हैं

इस सफर में साथ आये हमसफर ने छोड़ डाला
कल तलक थे मित्र उनके दुश्मन अब कहने लगे हैं

दौड़ूँ -भागूँ या चिल्लाऊँ क्या करुँ मैं ज़िंदगी
जिनको हमने दिल दिया था वेबफ़ा लगने लगे हैं

मन बड़ा मासूम ठहरा राज दिल की खोल देगा
ले "सुमित" यह लेखनी कुछ ग़ज़ल कहने लगे हैं

सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर

Saturday, 16 May 2015

दुखक बदरी कतबो गरजैये

गजल-16

दुःखक बदरी केतबो गरजैये
जीवनक ज्योति सदिखन जरैये

भने ज्ञान अछि सत्य केर तखनो
मोह -सरितामे सबकेओ बहैये

जाहि भूमि पर गर्व करैत अछि
छोरि निज गाम शहर भटकैये

सत्य -अहिंसा इतिहासक गप्प छै
अप्पन पहचान आप मेटबैये

आगि लगल अछि सगरो जगमे
मानवताक गाछ सेहो धधकैये

आइ प्रेमक पुष्प अछि खिलायल
"सुमित" मीठ - मीठ पवन सिहकैये

वर्ण -13

सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर

Monday, 8 April 2013

गणितक ओझराएल हिसाब छी

गजल-15

गणितक ओझराएल हिसाब छी हम
सुधि नहि रहल कोनो शराब छी हम

शोणित बहाबै लड़ि कऽ अपनेमे सब
दुखसँ छटपटाइत तेजाब छी हम

एक एक आखरमे अनन्त भाव अछि
बुझै सब अनचिन्हार किताब छी हम

पाथरसँ बस चोटक आशा करै छी
काँटमे फूलाएल एगो गुलाब छी हम

निर्लज्ज भऽ गेल जमाना कनिको लाज नै
बिसरि गेल हमरा की खराब छी हम

चलि रहल देखू आब कागजेपर देश
"सुमित" की कहतै एतऽ जबाब छी हम

वर्ण-15
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

Wednesday, 20 March 2013

छी दूर मुदा आँखिमे रहू प्रिय

गजल-14

छी दूर मुदा आँखिमे रहू प्रिय
आबि कऽ सपनामे जगबू प्रिय

नै दिन नै राति बुझै मनवाँ
आब विरहक दर्द सहू प्रिय

फागुन मास रंगीन छै दुनियाँ
अहाँ बेरंग किए छी कहू प्रिय

सुन्न लागै अपन घर आँगन
आयब कहिया सेहो लिखू प्रिय

आबि गेल फगुआ कतऽ छी अहाँ
मिसियो भरि रंग लगाबू प्रिय

बाट अहींके बाट तकैत अछि
"सुमित" कहै झटसँ आबू प्रिय

वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

Friday, 15 March 2013

नवका रंगमे रंगा रहल छै

गजल-13

नवका रंगमे रंगा रहल छै
अपनों लोकसँ डेरा रहल छै

बिसरि जाऊ सब बाग बगीचा
सबटा सपना उड़ा रहल छै

माँटि बनल आब गरदा देखू
अप्पन जिनगी जड़ा रहल छै

कतऽ छै कल-कल निर्मल धारा

छोड़ि संग सब पड़ा रहल छै

मोन कलपै छै समय देख कऽ
नीर नैन आब चोरा रहल छै

"सुमित" चाहत प्रेम सदिखन
डोरि सिनेहक जोड़ा रहल छै

वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन,समस्तीपुर