सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .
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Thursday, 19 May 2016

लप्रेक -5

लप्रेक (लघु प्रेम कथा) - 5

- चलु काया , दुनुगोटे भागिक' बियाह क' लैत छी। इ टोल-समाज हमर प्रेमके नञि सकारि सकैत अछि।
- एना किए कहै छी अनुज। हम कोनो पाप थोड़बे केलहुँए।
- हमर कह'क तात्पर्य इ अछि जे जँ अहाँ चाहैत छी जे अप्पन प्रेम सफल होइ त' आइ इ डेग उठाबहे पड़त।
- की भेलै जँ अहाँ आन जातिक छी? आब सभटा जाति समान अछि ,भेदभाव खतम भ' गेल अछि। अहाँ हमरा चाहैत छी ,हम अहाँक चाहैत छी। जँ हमरा दुनुगोटेक कोनो परेशानी नञि अछि, तखन इ समाजके एहिसँ कोन हर्जा?
- अहाँ बड मासूम छी काया। समाजक छल-परपञ्च नञि बुझैत छी। इ जाति-पाति ,स्वतंत्रता ,समता सभक गप्प केवल सुनैएमे नीक लगैछ ,धरातल पर आइयो धरि इ मान्य नै छै। समाजक ठेकेदार ल'ग इ सभ महत्वहीन अछि।

दुनू एकदोसरक हाथ कसि क पकड़ि लेलक आ अनिश्चित गंतव्य दिस विदा भ' गेल।

© सुमित मिश्र ''गुंजन"
करियन ,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

Thursday, 12 May 2016

लप्रेक-4

लप्रेक (लघु प्रेम कथा)

अनामिका आ पियूष दुनू दुइभ पर कचनार त'र बैसल छल। गाछीमे बहुत रास फूलक गाछ लागल छलै।अनामिका आ पियूष एक-दोसरक हाथमे हाथ राखने फूल सभके निहारि रहल छल। की ने की फुरेलै अनामिकाके ,ओ बाजलि-

-पियूष,ह'म अहाँके केहन लागैत छी ?
-स्वर्गक अप्सरा सन सुन्नरि,नदीक धार सन चंचला।
-आ हम्मर रुप………
-अहाँक रुप आँखि चोन्हरेबाक आतुर बिजुरी सन लागैछ।अहाँक केश बुझना जाइछ जेना कि इ घटा सौंसे आकाशके आच्छादित क' देत।अहाँक बोली लागैछ जेना कतौ  सुरमयी संगीत टेर देल गेल छै।
-हमर प्रेम केहन सन बुझाइत अछि,पियूष?
-आह…… इ की पूछि देलहुँ,अनामिका हमर करेज दरकि गेल।कहु त' ह'म अहाँक प्रेमक तुलना कोना क' सकै छी।एकरा त' शब्दमे नञि बान्हल जा सकैछ,इ अतुलनीय छैक।

अनामिका पियूषक बात सुनि कतौ हेरा गेली ।कचनार झहर' लागलै,मीठगर बसात सिहक' लागलै जेना ओ सब हुनकर बातक अनुमोदन करति होइ।

सुमित मिश्र "गुंजन"
सम्पर्क - 8434810179

लप्रेक-3

लप्रेक (लघु प्रेम कथा) 

बरियाती दरबज्जा लागि गेल छै , घरबैया सभ स्वागत करबाक लेल ठाढ़ छथि। सभहक मोन हुलसित अछि मुदा एहि परिधिमे दू टा लोक एहनो जे व्यथित छथि। पहिल छथि बियाही साड़ीमे दुखक वेगके सम्हारने निशा आ दोसर छथि डूगल ग्लास त'र नोर नुकौने मयंक।

काल्हि साँझ दुनू मनोकामना मंदिरमे भेंटल छलथि। मयंक कहने छल-
-की दुनू गोटेक हाथे प्रज्वलित कएल अपन प्रेम दीप काल्हि मिझा जैत?
-हँ मुदा मयंक ,हम अहाँक बिसरि थोड़बे सकैत छी।
-तखन अहाँ हमर प्रेम आ अपन पतिके प्रेम दुनू संग न्याय कोना क' सकै छी?
-नञि मयंक एना नै बाजू।देह नश्वर अछि मुदा प्रेम त' शाश्वत होइत छैक। हम अहाँसँ दैहिक प्रेम नञि केने छी। हम अहाँके आजीवन चाहैत रहब। जखन कखनो प्रेमक तराजू पर अहाँक पक्ष हल्लुक हैत,हम पासङ बनि अहाँके मान राखब।
निशाक एहि उत्तरक आगाँ मयंक निरुत्तर भ' गेल छल।

ब'र निशाक माँग सेनूरसँ भरि रहल अछि आ मयंक डूगल ग्लासक त'रसँ तराजूके पल्लामे पासङ बदलैत देखि रहल अछि।

सुमित मिश्र "गुंजन"
सम्पर्क - 8434810179

लप्रेक-2

लप्रेक (लघु प्रेम कथा) -2

रश्मि आइ भिनसरेसँ घ'रक साफ-सफाई में व्यस्त छली,कारण जे हुनकर पति जयंत एक मास दिल्लीमे कंपनीक काजसँ रहलाक उपरांत वापस आबि रहल छथि।हुनक मोन मोर जकाँ नाचि रहल छल। ओ सोचैत छली जे आइ जयंतसँ रुइस जेती आ जयंत बौंसैके लेल अनेकानेक प्रयास करत मुदा ओ दृढ़ बनल रहती। फेर जखन हारिक' जयंतक मुँह लटकि जेतै त' ओ भभाक' हँस' लगती।

रश्मि एहि गुन-धुन लागले छली कि हुनक नजरि एकटा पुरना पेटी पर गेलै। पेटी फोलिक' देखल त' ओहीमे किछ रद्दी आ एकटा डायरी छल। देखबासँ बुझाइत छल जे एकरा बेस सम्हारिक' राखल गेल छै।जिज्ञासावश रश्मि डायरीक पन्ना उनटाब' लागली। पहिल पन्ना उनटाबिते रश्मिक करेज धक्कसँ रहि गेल।समूचा देहमे जेना विद्युत प्रवाहित हुअ' लगलै,माथ झनझना उठल। 
पन्नामे लिखल छलै ,"हमर प्राणप्रिये, चंदा। अहाँक यादि सदिखनि हमरा हिलकोरैत रहैत अछि। जहियासँ अहाँ भेटलहुँ ,हम  अहींमे हेरायल छी।अहाँक प्रेममे हम उनमत्त भ' गेल छी। अहाँक केश,मेघ सनक मदिरायल नयन,दू देहके समाब' लेल व्याकुल बाहुपाश, बुझना जाइछ जे यैह सृष्टि थिक,चंदा।अहाँ बिन हमर कोनो आस्तित्व नञि।
केवल अहींके जयंत।"

रश्मिके मोनमे बहुत रास प्रश्न उठ' लागलै।की जयंत एहन विश्ववासघात क' सकैत छथि?कि हुनकर जीवनमे केओ और छै?कि हुनकर प्रेम प्रेम नञि ढ़ोंग अछि? 
ता धरि दरबज्जा पर केकरो आहट भेलै।शायद जयंत आबि गेला।आइ हुनकासँ हम तलाकक बात करबे करब। हमरा फुसियाहा प्रेम नञि चाही। जयंत कोठलीमे आबि गेला आ आबिते रश्मिके टोकला।
-अहाँ एना किएक मुँह लटकौने छी?की भेल?
-हमर सभटा संपत्ति हेरा गेल।
-से की हेरा गेल?
-हमर विश्वास,प्रेम,सिंदूर सभ किछु।
-अहाँ फरिछाक' कहू,हम नञि बुझि रहल छी।
-(डायरीक पन्ना देखाक') इ कि छैक?
-जा!इ अहाँके कत्तसँ भेटल।इ हमर पर्सनल डायरी अछि।
-आ इ अहाँक प्राणप्रिये चंदा के थिक?
-हा हा हा… नञि चिन्हलहुँ ,इ अहीँ छी।हम्मर कल्पनाक चंदा अर्थात अहाँ,हमर रश्मि।

रश्मि अचंभित भ' गेली। ओ झट द' जयंतसँ लिपटि गेली,बुझाइछ जे दुनू देह एक भ' जायत। आइ कोनो बान्ह इ प्रेमक धाराके नञि रोकि सकैछ,सभटा बान्ह उपटि जेतै……।

सुमित मिश्र "गुंजन"
करियन,समस्तीपुर
सम्पर्क - 8434810179

लप्रेक-1

लप्रेक (लघु प्रेम कथा)

रे राज!इ की क' लेलहीं?राजके हाथ पर घाव देखिक' सोनी चिहुँकि उठल।

राज हँसिक' बाजल- कोनो घबड़ेबाक बात नै अछि।हम अप्पन हाथ पर तोहर नाम लिखलहुँ अछि,ई हम्मर प्रेमक निशानी अछि।एकरा देखिक' हमरा तोहर प्रेमक यादि ताज़ा भ' जाइत अछि।

सोनी सिसक' लागल।हमरा नै बुझल छल,जे प्रेमक मोन  पारय  दुआरे कोनो निशानी चाही। माय कहैत छल,प्रेम त' आत्मामें बसल होइत अछि।

सुमित मिश्र "गुंजन"
करियन,समस्तीपुर