गजल- 16
कोठी भरल छै जिनकर भगवान सब कहैये
शोणित जे अपन जराबए इंसान सब कहैये
भेटए एत्त' नहि सज्जन अगबे दुष्ट सहसह
पाथर करेज जिनकर धनवान सब कहैये
कहलहुँ जे आबि बैसियौ दू क्षण समय माँगै छी
जे अपनो छल नहि कहने ओ आन सब कहैये
केहन रचल इ विधना अजगुत बड बुझाइए
हम सबहक मान राखलहुँ बैमान सब कहैये
केऊ कहितए मीठ बोली त' जिनगी धन्य बुझितौं
इ देखहीं सुमित घरमे दरबान सब कहैये
वर्ण - 19
सुमित मिश्र "गुंजन"
करियन,समस्तीपुर
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