सुमित मिश्र 'गुंजन'

मैं पढ़ लेता हूँ आँखों व चेहरों की तमाम भाषा.. . . . . .
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Friday, 1 November 2019

अब से तेरा हुआ

अब से तेरा हुआ लो वादा दे दिया तुमको
मैं पूरा कहाँ बचा हूँ आधा दे दिया तुमको

अब तो जगह ही नहीं कोई कैसे आ पाएगा
अपने दिल का हरेक हिस्सा दे दिया तुमको

इतना प्यासा हूँ कि ओस चाटता फिरता हूँ
कुछ करो तो यार मैंने दरिया दे दिया तुमको

कितनी दिलकश हो ये तो कह नहीं सकता
मैंने तो खुद को आईना बना दे दिया तुमको

मैं जब रुठता हूँ सुमित कोई मनाता भी नहीं
अब कौन फिक्र करे जो भी था दे दिया तुमको

©सुमित मिश्र गुंजन

Wednesday, 31 October 2018

का करें इश्क की दवा थोड़े है

का करें इश्क की दवा थोड़े है
साँसों में उतार लें हवा थोड़े है

उसपर क्यों ना उठाऊँ उँगलियाँ
कातिल है मेरा हमनवाँ थोड़े है

मैं खुद ही लुटा हूँ क्या दूँगा तुझे
फकीरों की बस्ती है दूकाँ थोड़े है

कहती हो बहुत प्यार है हमसे
कैसे मान लें भई जुबाँ थोड़े है

वो कहाँ सागर ढूँढते हो बेवकूफों
उसकी आँखें यहाँ हैं वहाँ थोड़े है

इश्क की मंडी में कईं धनपति हैं
हम फुटकर हैं पूँजी जमा थोड़े है

© सुमित मिश्र 'गुंजन'

Monday, 15 February 2016

है लगी ये आग कैसी

गजल

है लगी ये आग कैसी खाक भी जलने लगे हैं
आप की परवाह किसको बेख़बर रहने लगे हैं

रात का पसरा सन्नाटा रुह भी है काँपती
जाम के दो घूँट पीकर दर्द को सहने लगे हैं

है ये दुनिया कातिलाना खून अपने चूसते हैं
हाथ में खंजर छुपाए वो गले लगने लगे हैं

इस सफर में साथ आये हमसफर ने छोड़ डाला
कल तलक थे मित्र उनके दुश्मन अब कहने लगे हैं

दौड़ूँ -भागूँ या चिल्लाऊँ क्या करुँ मैं ज़िंदगी
जिनको हमने दिल दिया था वेबफ़ा लगने लगे हैं

मन बड़ा मासूम ठहरा राज दिल की खोल देगा
ले "सुमित" यह लेखनी कुछ ग़ज़ल कहने लगे हैं

सुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर